851 bytes added,
03:44, 28 जून 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=हौरैं-हौंरैं डोलतीं सुगंध-सनीं डारन तैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=सौंधे समीरन कौ सरदार / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
}}
<poem>
दोहा
(भ्रमरावली के गुंजार से संभ्रम-निवारण का वर्णन)
संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ, रह्यौ नहीं कछु ग्यान ।
मधुकरीन-मुख ता समै, परयौ सबद यह कान ॥६॥
</poem>