भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ / शृंगार-लतिका / द्विज
Kavita Kosh से
दोहा
(भ्रमरावली के गुंजार से संभ्रम-निवारण का वर्णन)
संभ्रम अति उर मैं बढ़्यौ, रह्यौ नहीं कछु ग्यान ।
मधुकरीन-मुख ता समै, परयौ सबद यह कान ॥६॥