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02:04, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=बायु बहारि-बहारि रहे छिति, बीथीं सुगंधनि जातीं सिँचाई / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=जानि-जानि आपने ही गेह कौ अराम / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 1
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<poem>
'''मत्तगयंद सवैया'''
''(महाराज ऋतुराज के सम्मानार्थ तैयारियों का वर्णन)''
बंदनवार बँधे सब कैं, सब फूल की मालन छाजि रहे हैं ।
मैनका गाइ रहीं सब कैं, सुर-संकुल ह्वै सब राजि रहे हैं ॥
फूल सबै बरसैं ’द्विजदेव’, सबै सुखसाज कौं साजि रहे हैं ।
यौं ऋतुराज के आगम मैं, अमरावति कौं तरु लाजि रहे हैं ॥१२॥
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