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02:39, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=कदंब प्रसूनन सौं सरसात / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=पलास-प्रसून किधौं नख-दाग / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
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<poem>
'''मौक्तिकदाम'''
''(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
नहीं नव अंकुर ए सरसात । धरयौ छिति हूँ कछु कंटक गात ॥
रहे नहिँ ओस के बुंद बिराजि । प्रसेद के बिंदु रही छिति छाजि ॥२२॥
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