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02:45, 29 जून 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=पलास-प्रसून किधौं नख-दाग / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=कहूँ-कहूँ बनीं-ठनीं, लसैं सु बापिका घनी / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 2
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<poem>
'''नाराच'''
''(परिपूर्ण ऋतुराज का प्रकाश रूप से वर्णन)''
रचे बितान से घने, निकुंज-पुंज सोहईं । प्रभा-निहारि हारि, हारि, चित्त-बृत्ति मोहईं ॥
समीर मंद मंद डोलि, द्वार पैं निकुंज के । पसारि पाँवड़े रहे, चहूँ प्रसूण-पुंज के ॥२४॥
</poem>