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08:22, 2 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=नागर से हैं खरे तरु कोऊ / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=मिलि माधवी आदिक फूल के ब्याज / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
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<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(पुनः ऋतुपति आगमन-वर्णन)''
डोलि रहे बिकसे तरु एकै, सु एकै रहे हैं नवाइ कैं सीसहिं ।
त्यौं द्विजदेव मरंद के ब्याज सौं, एकै अनंद के आँसू बरीसहिं ॥
कौंन कहै उपमा तिनकी जे लहैंईं सबै बिधि संपति दीसहिं ।
तैंसैंईं ह्वै अनुराग-भरे कर-पल्लव जोरि कैं एकै असीसहिं ॥२७॥
</poem>