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14:53, 3 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
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{{KKPageNavigation
|पीछे=औंरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
}}
<poem>
'''किरीट सवैया'''
''(ऋतुराज की स्तुति-वर्णन)''
मंद दुचंद भए बुध-बैनहिं, भाँखि सकैं कबि हूँ कबितान न ।
आइ लजाइ चलेई गए गुरु, आपनौं सौ लिऐं आपनौं आनन ॥
कौंन प्रभा करतार! बखानिहैं, मंगल-खाँनि बिलोकि कै कानन ।
सीस हजार हजार करैं, पैं न पार लहैंगे हजार जुबानन ॥३१॥
</poem>