1,097 bytes added,
15:02, 3 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=देखत हीं बन फूले पलास / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=फूले घने, घने-कुंजन माँहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 3
}}
<poem>
'''दुर्मिला सवैया'''
''(चिंता-वर्णन)''
नख सौं भुँअ खोदत कोद चहूँ, अवलोकत हूँ नहिं जानि परैं ।
कर कौ अवलंब कपोलन दै, भुज के अवलंब कौं जानु धरैं ॥
इहिं भाँति सौं मौन ह्वै बैठौ घरीक, सु जाइ कैं काहू तमाल-तरैं ।
तन और के जीव सजीव मनौं, मन मानहुँ और की देह धरैं ॥३३॥
</poem>