{{KKPrasiddhRachna}}
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बीती विभावरी जाग री! अम्बर पनघट में डुबो रही- तारा -घट ऊषा नागरी।नागरी ।
खग-कुल कुल-कुल -सा बोल रहा,किसलय का अंचल डोल रहा, लो यह लतिका भी भर लाई- मधु मुकुल नवल रस गागरी।गागरी ।
अधरों में राग अमंद पियेपिए,अलकों में मलयज बंद कियेकिए- तू अब तक सोई है आली! आँखों में भरे विहाग री।री ।
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