1,087 bytes added,
13:09, 4 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=द्विज
}}
{{KKPageNavigation
|पीछे=ता तिय तैं ह्वै क्रुधित, देति बहु-भाँति उराहन / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 4
}}
<poem>
'''रोला'''
''(परकीया नायिकाओं का संक्षिप्त वर्णन)''
रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं ।
बिन हरि भेटैं बहुरि, बहुत बिरहा-दुख पावैं ॥
हरि-आवन-बन-जानि, कबहुँ भूषन-पट साजैं ।
बेर भए तैं कबहुँ, ताप सौं सब अँग छाजैं ॥४५॥
</poem>