भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोला
(परकीया नायिकाओं का संक्षिप्त वर्णन)

रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं ।
बिन हरि भेटैं बहुरि, बहुत बिरहा-दुख पावैं ॥
हरि-आवन-बन-जानि, कबहुँ भूषन-पट साजैं ।
बेर भए तैं कबहुँ, ताप सौं सब अँग छाजैं ॥४५॥