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रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं / शृंगार-लतिका / द्विज
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रोला
(परकीया नायिकाओं का संक्षिप्त वर्णन)
रचि-रचि औरैं रूप, कबहुँ अनुराग बढ़ावैं ।
बिन हरि भेटैं बहुरि, बहुत बिरहा-दुख पावैं ॥
हरि-आवन-बन-जानि, कबहुँ भूषन-पट साजैं ।
बेर भए तैं कबहुँ, ताप सौं सब अँग छाजैं ॥४५॥