भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं / शृंगार-लतिका / द्विज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोला
(अनुशयाना, गुप्ता और लक्षिता का वर्णन)

उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं ।
लखि सँकेत तैं फिरे स्याम, कहुँ बिरह बढ़ावैं ॥
हरि-सँग बिहरत लखैं सखी, तब निज रति गोवैं ।
लखि बिहार कौ चिह्न, दूति रस-बैन निचोवैं ॥४६॥