रोला
(रासलीला और उद्धव-संवादादि का संक्षिप्त वर्णन)
खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन-कुंजन माँहीं |
ब्रज-जुबतीं बूझतीं जाइ, तरु-पुंजन पाँहीं ॥
लीला-बस हरि बसि-बिदेस, ऊधवै पठावैं ।
तिन सौं सब मिलि जाइ, आपनौ बिरह सुनावैं ॥४७॥
रोला
(रासलीला और उद्धव-संवादादि का संक्षिप्त वर्णन)
खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन-कुंजन माँहीं |
ब्रज-जुबतीं बूझतीं जाइ, तरु-पुंजन पाँहीं ॥
लीला-बस हरि बसि-बिदेस, ऊधवै पठावैं ।
तिन सौं सब मिलि जाइ, आपनौ बिरह सुनावैं ॥४७॥