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श्री राधा की कबहुँ हरि / शृंगार-लतिका / द्विज

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दोहा
(संक्षिप्ततया नायक-वर्णन)

श्री राधा की कबहुँ हरि, जोवैं बन मैं बाट ।
लखि राधै हरि संभ्रमै, बर-अंगन कौ ठाट ॥४८॥