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मेरा घर-आँगन / भारतेन्दु मिश्र
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16:49, 5 जुलाई 2011
पीली होकर घास
यहाँ हरियाती है
बीमारों की संख्या
बढती
बढ़ती
जाती है
थोथे गर्जन और धुएँ के साए हैं ।
अब तो सभी
हवा
मे बाते
में बातें
करते हैं
व्याकुल हुए किसान
भूख से मरते हैं
मोबाइल वो लिए हुए
मुह बाये
मुँह बाए
हैं ।
</poem>
अनिल जनविजय
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