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|पीछे=उजरत कहुँ संकेत हिऐं, बहु दुख उपजावैं / शृंगार-लतिका / द्विज
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|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 5
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<poem>
'''रोला'''
''(रासलीला और उद्धव-संवादादि का संक्षिप्त वर्णन)''

खेलि-रास हरि दुरैं, बहुरि बन-कुंजन माँहीं |
ब्रज-जुबतीं बूझतीं जाइ, तरु-पुंजन पाँहीं ॥
लीला-बस हरि बसि-बिदेस, ऊधवै पठावैं ।
तिन सौं सब मिलि जाइ, आपनौ बिरह सुनावैं ॥४७॥
</poem>
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