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01:37, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=बैठी चित-हित चाँहि / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=आसिष पाइ, उपाइ-बिनु / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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'''मनहरन घनाक्षरी'''
''(भारती देवी का आशीर्वाद-वर्णन)''
ठौर-ठौर निरखि मरंद सौ झरत रस, सुकबि-मलिंद वै भुलैहैं तन-मन तैं ।
’द्विजदेव’ की सौं या सिँगार की सलौनी-लता, बीस-बिसैं फैलिहैं सुबुद्धि उपबन मैं ॥
प्रीति अति बाढ़िहैं बिलोकि रस-रीति याकी, राधा अरु माधव खी बरन-बरन पैं ।
सुरुचि सुगंधित सरस कछु ह्वै हैं अति, तीनि हूँ भुवन याके तीनि हीं सुमन तैं ॥५६॥
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