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01:46, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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{{KKPageNavigation
|पीछे=अति मींठी मति के बसैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=आई न जो बक-बावरे पैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''दोहा'''
''(कवि संतोष-वर्णन)''
उर-अंतर आवत इती, मति सौं अति-अकुलाइ ।
कह्यौ कबित-मिस आप ही, तुरत ’गिरा’ समुझाइ ॥६०॥
</poem>