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उर-अंतर आवत इती / शृंगार-लतिका / द्विज

दोहा
(कवि संतोष-वर्णन)

उर-अंतर आवत इती, मति सौं अति-अकुलाइ ।
कह्यौ कबित-मिस आप ही, तुरत ’गिरा’ समुझाइ ॥६०॥