अति मींठी मति के बसैं / शृंगार-लतिका / द्विज

दोहा
(कवि संकल्प-विकल्प-वर्णन)

अति मीठीं मति के बसैं, सतसंगी-जग-माँह ।
लखि उदारता ग्रंथ की, कैसैं करिहैं चाँह ॥५९॥

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