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01:52, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=आई न जो बक-बावरे पैं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़ / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''दोहा'''
''(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)''
लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं, दैहैं सुमति बनाइ ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ ॥६२॥
</poem>