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लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज

दोहा
(कविकृत सज्जन प्रशंसा-वर्णन)

लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं, दैहैं सुमति बनाइ ।
रहै भलाई भलेन मैं, केबल अंग-सुभाइ ॥६२॥