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कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़ / शृंगार-लतिका / द्विज
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दोहा
(कवि की उक्ति)
कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़, ता छन देब-मनाइ ।
सुभ सिंगार-लतिका सकल, जग-फैलन के चाइ ॥६३॥