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01:55, 6 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=द्विज
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|पीछे=लखि-लखि कुमति कुदूषनहिं / शृंगार-लतिका / द्विज
|आगे=रसिक छमैंगे भूल / शृंगार-लतिका / द्विज
|सारणी=शृंगार-लतिका / द्विज/ पृष्ठ 6
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<poem>
'''दोहा'''
''(कवि की उक्ति)''
कलम गह्यौ मनकै सुदृढ़, ता छन देब-मनाइ ।
सुभ सिंगार-लतिका सकल, जग-फैलन के चाइ ॥६३॥
</poem>