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कुछ ऐसे साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया / गुलाब खंडेलवाल
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19:41, 7 जुलाई 2011
मिलन की प्यास को इतना बढ़ाके छोड़ दिया
कृपा की डोर को छोटा
बना के
बनाके
छोड़ दिया
तड़प के आ गयी मंज़िल हमारे पाँव के पास
Vibhajhalani
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