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कुछ ऐसे साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया / गुलाब खंडेलवाल
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कुछ ऐसे साज़ को हमने बजाके छोड़ दिया
सुरों को और सुरीला बनाके छोड़ दिया
मिलन की प्यास को इतना बढ़ाके छोड़ दिया
कृपा की डोर को छोटा बनाके छोड़ दिया
तड़प के आ गयी मंज़िल हमारे पाँव के पास
लगन को इतनी बुलंदी पे लाके छोड़ दिया
बहुत-से ऐसे भी जीवन में आ चुके हैं मोड़
जब उनके नाम को होँठों पे लाके छोड़ दिया
लहर हैं वह जिसे कोई भी किनारा न मिला
वो धुन हैं हम जिसे कोयल ने गाके छोड़ दिया
गुलाब, ऐसे ही खिलते हैं हम किसीने ज्यों
दिया जलाके मुक़ाबिल हवा के छोड़ दिया