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ख़त्म रंगों से भरी रात हुई जाती है / गुलाब खंडेलवाल
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19:04, 8 जुलाई 2011
ख़ुद ही बाज़ी ये मगर मात हुई जाती है
उनके आगे नहीं
मुंह
मुँह
खोल भी पाते हों गुलाब
आँखों-आँखों में ही कुछ बात हुई जाती है
<poem>
Vibhajhalani
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