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तुम्हारी कविता घिरा रहाशुभ-चिन्तकों सेबिछा रहाजब तक सड़क सा !खड़ा हुआ तन करएक दिनअकेला रह गयादरख़्त-सा !तिनके में आगबरसाती मौसम का डरअधबुना रह न जाए नीड़चिड़िया को फिकर हैबेचैन हुई उड़तीइधर से उधरतिनके जुटातीजलते चूल्हे से भीखींचकर ले गई तिनकाबुन रही हैनीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !आग है तिनके मेंबहुत बारऔरहथेलियों के बीच…चिड़िया– आग से बेखबर हैचिड़िया को बसनीड़ की फिकर है।
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