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बिछा रहा जब तक / सुरेश यादव

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घिरा रहा
शुभ-चिन्तकों से
बिछा रहा
जब तक सड़क सा !
खड़ा हुआ तन कर
एक दिन
अकेला रह गया
दरख़्त-सा !
तिनके में आग
बरसाती मौसम का डर
अधबुना रह न जाए नीड़
चिड़िया को फिकर है
बेचैन हुई उड़ती
इधर से उधर
तिनके जुटाती
जलते चूल्हे से भी
खींचकर ले गई तिनका
बुन रही है
नीड़ में जिसको जल्दी-जल्दी !
आग है तिनके में
और
चिड़िया– आग से बेखबर है
चिड़िया को बस
नीड़ की फिकर है।