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चाँदनी करती चली परिहास / गुलाब खंडेलवाल
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20:04, 19 जुलाई 2011
लाज से तीनों गये मर जब कि आयी पास
एक
चकवी
चकई
के खुले पट
एक नभ-दीपक बुझा झट
एक बाला सरित
-
तट पर आ गयी, कटि पर
लिए
लिये
घटएक विरहिन सो गयी होकर नितांत
हतास
हताश
चाँदनी करती चली परिहास
Vibhajhalani
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