भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँदनी करती चली परिहास / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


चाँदनी करती चली परिहास

एक मधुकर को जगाया
एक पक्षी सो न पाया
एक नत शेफालि का आँसू धरा पर ढुलक आया
रात में कुछ प्रात का ऐसा हुआ आभास

एक कमल विकच खड़ा था
एक कुमुद मुँदा पड़ा था
एक झोंका वायु का, गति के लिए नभ में अड़ा था
लाज से तीनों गये मर जब कि आयी पास

एक चकई के खुले पट
एक नभ-दीपक बुझा झट
एक बाला सरित-तट पर आ गयी, कटि पर लिये घट
एक विरहिन सो गयी होकर नितांत हताश

चाँदनी करती चली परिहास