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हम तो काँटे ही चुनते हैं / गुलाब खंडेलवाल
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20:51, 19 जुलाई 2011
दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन
धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण
जो
तानें
ताने
बुनते हैं
हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं
<poem>
Vibhajhalani
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