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मुक्तक / गुलाब खंडेलवाल

No change in size, 20:44, 21 जुलाई 2011
७.
प्रीति के सुमन खिला देती हो
लाज की नींव नीवँ हिला देती हो
चाँदनी रात और ऐसी हँसी!
दूध में शहद मिला देती हो
चाँद को फूल की महक मिल जाय
तुम मुझे एक बार मिल जाओ
भूमि को स्वर्ग की महक झलक मिल जाय
<poem> 
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