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मुक्तक / गुलाब खंडेलवाल

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१.
हर बूँद आँसुओं की नहीं मोती है
हर आह न बिजली की फसल बोती है
हर प्रीति महाकाव्य नहीं बन जाती
हर वेदना इतिहास नहीं होती है
२.
शब्द में ज्योति का परस है आज
भाव, गति, लय, अलस-अलस है आज
गुनगुना दिया तुमने अधरों से
गीत में और नया रस है आज
३.
लहर बढ़ी तो किनारों की याद आने लगी
किरण चढ़ी तो सितारों की याद आने लगी
हुए आकंठ प्राण जब तो पुकारा तुमको
कली झड़ी तो बहारों की याद आने लगी
४.
ज्योति-सी उमड़ चली लगती है
स्वर्णमय गली-गली लगती है
श्याम घन केश हटा लो मुख से
रूप की धूप भली लगती है
५.
स्नेह तुल रहा चाँदनी में आज
चाँद घुल रहा चाँदनी में आज
दूधिया हँसी, अंग केसर-से
रंग खुल रहा चाँदनी में आज
६.
फूल के हास से बना है रूप
चाँद की छाँह से छना है रूप
चेतना-मुकुर, प्रेम का प्रतिबिम्ब
ईश की आत्म कल्पना  है रूप
७.
प्रीति के सुमन खिला देती हो
लाज की नीवँ हिला देती हो
चाँदनी रात और ऐसी हँसी!
दूध में शहद मिला देती हो
८.
फूल को चाँद की चमक मिल जाय
चाँद को फूल की महक मिल जाय
तुम मुझे एक बार मिल जाओ
भूमि को स्वर्ग की झलक मिल जाय