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22:58, 21 जुलाई 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वत्सला पाण्डे
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>वही किस्सा फिर
सुनाने लगे तुम
जिसकी आवाज़ से
भागती रही हमेशा
जिसे भूल जाना
चाहती रही मैं सदा
किस्सा जो
हो नहीं सकता
कभी पूरा
जाग गई इच्छा
तब
क्या करूंगी मैं
मत जगाओ
इतना कि
तरसती ही रहूं
नींद के लिए सदा
सुनाना ही है
तब
सुनाओ वही किस्सा
कि
उनींदी रहूं सदा
</poem>