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दिन ज़िन्दगी के यों भी गुज़र जायँ तो अच्छा! / गुलाब खंडेलवाल
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20:26, 11 अगस्त 2011
फिर भी कभी ये हाथ ठहर जायँ तो अच्छा
मज़मा
मजमा
उठा-उठा है, झुकी आ रही है शाम
मेले से हम अब लौटके घर जायँ तो अच्छा
Vibhajhalani
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