Changes

छूकर वहीं दुबारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !
कौन बचाकर आँख सुबह की नींद उतार गया
तुम करके और इशारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !
होना-जाना क्या है, जैसे कल था, वैसा कल
लिखकर तुम उजियारा
ऐसे देखा नहीं करो !
मन होता है पारा !
मन होता है पाराऐसे देखा नहीं करो मन होता है पारा !!
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits