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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=नवीन सी. चतुर्वेदी}}{{KKCatGeet}}<poem>मुझको तुझसे रंज नहीं है,<br />तुझको मुझसे द्वेष नहीं!<br />फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br /><br />मेरी पीङा - तेरे आँसू,<br />तेरा सुख - मेरी मुस्कान|<br />तेरी राहें - मेरी मंजिल,<br />मेरा दिल - तेरे अरमान|<br />मेरा घर - तेरा चौबारा,<br />तेरा कूचा - मेरी शान|<br />दौनों ही कहते रहते हैं,<br />मानव - मानव एक समान|<br /><br />फिर हम कैसे प्रुथक् हुए?<br />जब मत मैं अन्तर लेश नहीं!<br />फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br /><br />कौन सनातन है? प्यारे -<br />इस मुद्दे मैं कुछ जान नहीं|<br />पारस्परिक समन्वय से,<br />हम दौनों ही अनजान नहीं|<br />क्या तुझको - क्या मुझको,<br />वो सब पहली बातें ध्यान नहीं?<br />दौनों जानें, कुछ इक बातें,<br />होती कभी समान नहीं|<br /><br />कया फिजूल बातों से,<br />तेरे दिल को पहुंचे ठेस नहीं?<br />फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br /><br /><br />आ, पल भर मिल बैठ जरा,<br />सुन ले मन की बातें मेरी|<br />खुदगर्जों का बहिष्कार कर,<br />बात सुनूंगा मैं तेरी|<br />सुलझा लें गुत्थी,<br />सदियों से,<br />अनसुलझी हैं बहुतेरी|<br />आज नहीं, तो कभी नहीं,<br />कल फिर हो जायेगी देरी|<br /><br />क्या तेरे आराध्य देव का,<br />एक नाम, 'अखिलेश' नहीं?<br />फिर हम क्यों लङते रहते हैं?<br />जब किंचित भी क्लेश नहीं!!<br /><poem>{{KKCatGeet}}</poem>