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08:27, 31 अगस्त 2011 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल
|संग्रह=
}}
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<poem>
तुम क्रान्ति के अग्रदूत हो
या सूत्रधार
आदमी को भीड़ में
तब्दील करते ही
सुरक्षित ऊँचाई पर आसीन
.............................
विवश आक्रामक
एक दर्शक मात्र में
बदल जाओगे
क्योंकि अब
भीड़ उछालेगी पत्थर
और लहूलुहान भी
भीड़ ही होगी
( क्रान्तियों के संदर्भ में)
</poem>