भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्रान्ति के अग्रदूत / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
तुम क्रान्ति के अग्रदूत हो
या सूत्रधार
आदमी को भीड़ में
तब्दील करते ही
सुरक्षित ऊँचाई पर आसीन
.............................
विवश आक्रामक
एक दर्शक मात्र में
बदल जाओगे
क्योंकि अब
भीड़ उछालेगी पत्थर
और लहूलुहान भी
भीड़ ही होगी
( क्रान्तियों के संदर्भ में)