Changes

आत्मबोध / विजय कुमार पंत

1,129 bytes added, 03:22, 12 सितम्बर 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय कुमार पंत }} {{KKCatKavita}} <poem> विश्वासों के छिपे भुज…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
विश्वासों के छिपे भुजंगों ने अब डसना छोड़ दिया है....
रोना मुश्किल ना हो जाये, मैंने हँसना छोड़ दिया है ....

तोड़ दिया है जाल समय का बिसरा कर सब पिछली यादें
ढीले-ढाले संबंधो को मैंने कसना छोड़ दिया है....

रंग बिरंगी दुनिया अक्सर ठहरा देती थी जीवन को
अनुमानों से गढ़े महल में, मैंने बसना छोड़ दिया है...

उम्मीदों के नए नए सुख अब कुछ डिगा नहीं पाते है..
फंसे फंसे से अरमानो में , मैंने फंसना छोड़ दिया है...
<poem>
270
edits