Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> बहुत ही सख़्त…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
बहुत ही सख़्त
अंधेरा का एक टुकड़ा
भटकता रहता है
मेरी आँखों के आसपास
हर बार जाने क्यों?
नींद के पाँव
मेरी पलकों पर आकर फिसल जाते हैं
और इस सिलसिले की शुरूआत
उस वक़्त हुई
जब मेरी उम्र तेरह साल थी
मैं आज भी तेरह साल का हूँ
और जब तक मुझे नींद नहीं आएगी
तब तक तेरह साल का ही रहुँगा
क्योंकि इसी उम्र के क़रीब
किसी एक लम्हे में
बाबूजी, साँस लेना भूल गये थे!
<Poem>
Mover, Reupload, Uploader
301
edits