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कह दो तो! / ओम निश्चल

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|रचनाकार=ओम निश्चल
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<Poem>
जूडे मे फूल टॉंक दूँ
ओ प्रिया
कह दो तो हरसिंगार का

दूध नहाई जैसी रात
हुई सॉंवरी,
रह रह के भिगो रही
पुरवाई बावरी,
भीग गया है तन मन
पॉंवों में है रुनझुन
अंग अंग में उभार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो तो छंद प्यार का

खुली हुई सॉंकल है
खुली हुई खिडकियॉं
शोख हवाऍं देतीं
मंद मंद थपकियॉं
भीतर बाहर अमंद
बिखरी है नेह गंध
साँस सॉंस में उतार दूँ
ओ प्रिया,
कह दो सुर सितार का
<Poem>
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