Changes

तालमखाना / सुधा गुप्ता

1,125 bytes added, 08:15, 23 सितम्बर 2011
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा गुप्ता }} {{KKCatKavita}} <poem> आएगा फिर हरा, सुगन्ध भरा …
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा गुप्ता
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

आएगा फिर
हरा, सुगन्ध भरा
ताल मखाना ।
श्वेत गुलाबी
खिले कमल-दल
पोखर फूला

भीनी खुशबू
सुरंग मधुरिमा
भँवरा भूला
हरित नाल
में लटक झूलता
ताल मखाना ।
कुछ दिन को
परिश्रमी बालक
रोज़ी पाएँगे

तैर-कूद वे
पोखर में घुसके
कुछ लाएँगे
हरी डिबिया
छिपा पड़ा है मीठा
ताल मखाना ।
कभी सिंघाड़े
कमल-फूल कभी
वे पा जाएँगे

दो-चार पैसे
बदले में मिलेंगे
कुछ खाएँगे
बेचेगा फिर
सजा टोकरी , बच्चा
ताल मखाना
-0-
</poem>
'''मोटा पाठ'''