भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तालमखाना / सुधा गुप्ता
Kavita Kosh से
आएगा फिर
हरा, सुगन्ध भरा
ताल मखाना ।
श्वेत गुलाबी
खिले कमल-दल
पोखर फूला
भीनी खुशबू
सुरंग मधुरिमा
भँवरा भूला
हरित नाल
में लटक झूलता
ताल मखाना ।
कुछ दिन को
परिश्रमी बालक
रोज़ी पाएँगे
तैर-कूद वे
पोखर में घुसके
कुछ लाएँगे
हरी डिबिया
छिपा पड़ा है मीठा
ताल मखाना ।
कभी सिंघाड़े
कमल-फूल कभी
वे पा जाएँगे
दो-चार पैसे
बदले में मिलेंगे
कुछ खाएँगे
बेचेगा फिर
सजा टोकरी , बच्चा
ताल मखाना
-0-
मोटा पाठ