गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
काक बखान / गोपाल कृष्ण भट्ट 'आकुल'
4 bytes added
,
17:05, 23 सितम्बर 2011
बड़-बड़ बानी बोल कै, कागा मान घटाय।
कोऊ
वाकै
वाकौ
यार है, 'आकुल'
कोइ
कोई
बताय।।2।।
चिरजीवी की काकचेष्टा, जग ने करी बखान।
इंद्र पुत्र जयंत कूँ, एक आँख कौ दण्ड।।7।।
आमिष भोजी कागला, कोई
न
प्रीत बढ़ाय।
औघड़ सौ बन-बन घूमै, यूँ ही जीवन जाय।।8।।
Gopal krishna bhatt 'Aakul'
130
edits