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13:48, 24 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
ख़ुद की नहीं ख़बर प्यारे
उल्फ़त का है असर प्यारे
ख़ुशियों को ढूंढ़ता जीवन
भटका है दर-ब-दर प्यारे
कह दे तुझे जो कहना है
मत कर अगर मगर प्यारे
थोड़ी ख़ुशामदें भी सीख
काफ़ी नहीं हुनर प्यारे
तड़पा ले और तड़पा ले
रह जाए क्यों कसर प्यारे
औरों पे तंज़ बस, बस, बस
अपनी भी बात कर प्यारे
कोई भी शब नहीं ऐसी
जिसकी न हो सहर प्यारे
यूँ ही नहीं ग़ज़ल में दम
झेले बहुत क़हर प्यारे
मर जाऊँगा ‘अकेला’ मैं
मत फेर यूँ नज़र प्यारे
<poem>