भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खुद की नहीं खबर प्यारे /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
Kavita Kosh से
ख़ुद की नहीं ख़बर प्यारे
उल्फ़त का है असर प्यारे
ख़ुशियों को ढूंढ़ता जीवन
भटका है दर-ब-दर प्यारे
कह दे तुझे जो कहना है
मत कर अगर मगर प्यारे
थोड़ी ख़ुशामदें भी सीख
काफ़ी नहीं हुनर प्यारे
तड़पा ले और तड़पा ले
रह जाए क्यों कसर प्यारे
औरों पे तंज़ बस, बस, बस
अपनी भी बात कर प्यारे
कोई भी शब नहीं ऐसी
जिसकी न हो सहर प्यारे
यूँ ही नहीं ग़ज़ल में दम
झेले बहुत क़हर प्यारे
मर जाऊँगा ‘अकेला’ मैं
मत फेर यूँ नज़र प्यारे