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23:48, 14 अक्टूबर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सांवर दइया
|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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{{KKCatMoolRajasthani}}
{{KKCatKavita}}
<poem>जिण रस्तै दुनिया कैवै डर देखो
मन कैवै उणी रस्तै गुजर देखो
म्हैं कैवां सोच-समझ कर्या सगपण
बिना भीतांळो है म्हांरो घर देखो
मानी थांरी, औ जंगळ है जंगळ
पण आज तो अठै मंगळ कर देखो
स्सौ कैवै म्हैं भुजा एक दूजै री
हुयो लखावै बात रो असर देखो
घर खाला रो कोनी म्हैं ई जाणा
हथाळी मेल राख्यौ औ सर देखो
</poem>