Last modified on 15 अक्टूबर 2011, at 05:18

जिण रस्तै दुनिया कैवै डर देखो / सांवर दइया

जिण रस्तै दुनिया कैवै डर देखो
मन कैवै उणी रस्तै गुजर देखो

म्हैं कैवां सोच-समझ कर्‌या सगपण
बिना भीतांळो है म्हांरो घर देखो

मानी थांरी, औ जंगळ है जंगळ
पण आज तो अठै मंगळ कर देखो

स्सौ कैवै म्हैं भुजा एक दूजै री
हुयो लखावै बात रो असर देखो

घर खाला रो कोनी म्हैं ई जाणा
हथाळी मेल राख्यौ औ सर देखो